Devshayani Ekadashi: पांच शुभ योगों में से देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु योगनिद्रा में उदय होंगे..

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29 जून और गुरुवार को आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है। पुराणों के अनुसार इस तिथि पर भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। जो चार महीने तक चलती है इसलिए इसे देवशयनी एकादशी भी कहा जाता है। इस बार अधिक मास के कारण भगवान विष्णु चार के बजाय पांच महीने तक योग निद्रा में रहेंगे। इस वर्ष देवशयनी एकादशी पर चंद्रमा स्वाति नक्षत्र में रहेगा। जिससे स्थिर नाम का शुभ योग बन रहा है। इसके साथ ही ग्रहों की स्थिति से सिद्धि, बुधादित्य, गजकेसरी और रवियोग भी बन रहा है। इस शुभ संयोग में भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से शुभ फलों में वृद्धि होगी। यह संयोग स्नान और दान के लिहाज से बेहद खास रहेगा।

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देवशयनी एकादशी का महत्व
इस एकादशी को सौभाग्यदायिनी एकादशी कहा जाता है। पद्म पुराण के अनुसार इस दिन व्रत करने से जाने-अनजाने में किए गए पाप समाप्त हो जाते हैं। इस दिन पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इस व्रत को करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भागवत महापुराण के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन राक्षस शंखासुर का वध हुआ था। उस दिन से भगवान चार महीने के लिए सुमुद्रा में शयन करते हैं।

विष्णुजी के साथ माता लक्ष्मीजी का अभिषेक करें
एकादशी के दिन भगवान विष्णु और उनके अवतारों की विशेष पूजा और अभिषेक करने की परंपरा है। विष्णुजी के साथ-साथ देवी लक्ष्मीजी का भी अभिषेक करना चाहिए। श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप का दूध से अभिषेक करें। आषाढ़ सुद अगियाराश को शयनी एकादशी (देवशयनी) कहा जाता है। इस शुभ दिन पर विष्णुशयन व्रत का पालन करें और चातुर्मास व्रत शुरू करें। मोक्ष की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को इस दिन शयन व्रत और चातुर्मास व्रत प्रारंभ करना चाहिए।

भगवान विष्णु चार महीने तक समुद्र में शयन करते हैं
देवशयनी एकादशी को देवपोधनी एकादशी भी कहा जाता है। भगवान विष्णु आषाढ़ सुद ग्यारह से चार महीने के लिए समुद्र में शयन करते हैं। अत: मान्धाता राजा को यह परम पवित्र घटना स्मरण रही और उन्होंने महर्षि अंगिरस की आज्ञानुसार श्रद्धापूर्वक इस अद्वितीय व्रत को किया। सोम ग्या मई वारसे और आषाढ़ सुधर जाए तो पूरा साल सुधर जाएगा। यदि यह एक एकादशी का व्रत किया जाए तो मनुष्य की कुंडली भी सुधर जाएगी। इस प्रतिज्ञा का फल यह हुआ कि मीठी वर्षा होने से राजा और प्रजा आनन्दित हुए और अन्न का ढेर लग गया।

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``नमो नारायण.'' मंत्र का जाप करें
चातुर्मास के दौरान व्रती को बैंगन, करेला, कद्दू आदि सब्जियों से परहेज करना चाहिए। व्रत करने वाले व्यक्ति को श्रावण माह में सब्जी, भादर माह में दही, असो माह में दूध और कार्तिक माह में दालों का त्याग करना चाहिए। चातुर्मास के दौरान योगाभ्यास करने से ब्रह्मपद की प्राप्ति होती है। जिन्होंने ``नमो नारायण'' की शपथ ली। जो व्यक्ति एकाग्रचित्त होकर मंत्र का जाप करता है उसे अनंत फल की प्राप्ति होती है और उसे परम गति प्राप्त होती है।

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